सन 96 में हमने साथ-साथ काम किया... और शायद उसी साल जुदा भी हो गये। प्रभात ख़बर में उस वक्त हम सीख रहे थे और लालबहादुर ओझा हमें सिखा रहे थे। उन्होंने बनारस से अख़बारनवीसी का कोर्स किया था। बाद में एकलव्य चले गये और वहां कायदे से सालो साल काम किया। इस दौरान एकाध बार मुलाकात हुई। पुस्तक मेलों में, इधर-उधर। एक बार भोपाल में भी।
वे 1996 में भी अच्छे आदमी थे। आज भी हैं। बीच के दौर में भी रहे होंगे। संयम, स्वभाव और दोस्तों से संगति में एक अच्छा आदमी होना मुश्किल है। अभी पहली बार हिंदी के चक्कर में उनसे लंबी बातचीत हुई। एक पूरी शाम उनके घर रहा। भोजपुरी सिनेमा पर उनके कामों और जीवन के उद्देश्यों के बारे में लंबी बातचीत हुई।
बीच-बीच में उनकी सौम्य सुशील बंगाली पत्नी डेढ़ साल के बच्चे के साथ घर के किसी कोने पाये में नज़र आती रहीं। छोटे बच्चे के साथ माएं ऐसे ही झिज्झिर कोना खेलती नज़र आती हैं। बीच में एक बार लालबहादुर जी ने लीफ वाली चाय बना कर पिलायी।
सुकन्या और लालबहादुर जी के विवाह की सूचना पटना आइसा के कुछ साथियों ने दी थी। वे लोग जब दिल्ली आये, तो विवाहोपरांत भोज खाने के लिए लालबहादुर जी के यहां हो भी आये। हमारी ऐसी घनिष्टता थी नहीं, कि हम भी उस भोज में शामिल होने की दावेदारी करते।
सुकन्या जेएनयू में अर्थशास्त्र पढ़ती रही हैं। पीएचडी भी किया है। अभी एनसीईआरटी के लिए किताब लिखने वालों की मंडली में शामिल हैं। बंगाली और अंग्रेज़ी धड़ल्ले से बोलती हैं। हिंदी बोलने में खासी तकलीफ होती मुझे दिखी। रात में उन्होंने प्यार से खाना खिलाया। भात, दाल और करैले की भाजी के साथ आलू-गोभी की सब्ज़ी। स्वाद में सर्वोत्तम। लेकिन उन्होंने कह ही दिया कि हम आपके लिए कुछ ज्यादा नहीं कर सके। हम उनको क्या बताएं कि हम इतने में ही खुश हो जाते हैं कि कोई हमको भरपेट खाना खिला देता है।
तो रात ग्यारह बजे विदाई की बेला भी आयी। दफ्तर की गाड़ी दरवाज़े पर खड़ी हो चुकी थी। सुकन्या ने पूछा कि रात की ड्यूटी 12 बजे से छह बजे तक चलती है क्या। हमने कहा नहीं, हम तो मज़दूर आदमी ठहरे। आठ-नौ घंटे की ड्यूटी पड़ जाती है। सुबह निकलते-निकलते आठ-नौ बज जाएंगे। सुकन्या का जवाब था- तब महिलाएं डबल मज़दूर होती हैं। घर में भी, बाहर में भी।
इस जवाब के लिए मैं तैयार नहीं था। लेकिन ऐसी हालत में खिलखिलाने की बेशर्म अदा के सिवा और मेरे पास कुछ नहीं था।
Sunday, May 13, 2007
महिलाएं डबल मज़दूर होती हैं
Posted by Avinash Das at 7:34 AM
Labels: दोस्तों का घर
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