कुछ दोस्त नाराज़ हैं कि मैं मोहल्ले को अपनी दुकान बनाने में लगा हूं। साइड बार की झलकियां देखने से लगता है कि सेल्फ प्रोज़क्शन का कैलेंडर है। सायास ऐसा नहीं भी हो, तो अनायास की कोई व्याख्या मेरे पास नहीं है। लेकिन शर्म मुझको भी आती है। मैं अब सब यहां शिफ्ट कर रहा हूं। मोहल्ला दोस्तों का है, और ये मेरा अपना घर है। इस घर के बैठकखाने में भी हम सिगरेट फूंक सकते हैं, चाय सुड़क सकते हैं, लेकिन अपना कमरा सिर्फ मेरे लिए होगा। यहां दोस्तों का लिखा कुछ भी नहीं छापूंगा। सिर्फ मैं लिखूंगा। पहली पाती बस इतनी ही।
Thursday, March 22, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
वाह..लोग पहले घर बना के फिर मोहल्ला बनाते हैं..तुमने तो उलटा किया पहले हल्ला कर कर के मोहल्ला आबाद करा अब घर में घुस के सोना चाहते हो.. वो भी अपने कमरे में.. बहुत खूब!
यह अच्छा किया अविनाश आपने। दोस्तों को साथ लेकर मोहल्ला बसाने के बाद अलग से निजी घर भी बना लिया, ताकि मोहल्ले में जब कभी कोलाहल और शोर बहुत बढ़ जाए तो चैन की सुकून भरी साँसें लेने के लिए अपने घर की खटिया पर बीच-बीच में आराम कर सको।
और हाँ, इस घर में मुक्ता जी का कमरा तो दिख ही नहीं रहा। हमलोग उनके शब्दों को भी चिट्ठे पर पढ़ना चाहते हैं। पिछली बैठक में हमने उनसे अनुरोध भी किया था और हमें आश्वासन भी मिला था।
ये आपने अच्छा किया। नाम अच्छा रखा है। धन्यवाद।
बहुत दिन स अहाँक के ई मेल करय के सोचि रहल छलहूँ...आशा जे अहाँ ठीक होयब।जेएनयू आऊ।
अविनाश जी आपकी उम्मीद पढ़ी.. उम्मीद से भी बढ़कर निकली. साधुवाद. मेरे ब्लाॅग पर मेरी भी उम्मीद चस्पां है. उम्मीद है कि आप मेरी उम्मीद को पढ़कर उस पर प्रतिक्रिया देंगे. मेरे ब्लाॅग का पता है-
bhagjogni.blogspot.com
मंजीत
चलिए अविनाश भैया आप अब अपनी बात कहते नजर आयेंगे.
मोहल्ले को अपना काम करने दिजिए और यहां आप किजीए..हमलोगो को को तो दोनो तरफ से फायदा ही है....
अविनाश,
अपने कमरे का वेंटिलेशन ठीक रखना, सीलन नहीं भरने देना, टाॅयलेट की साफ सफाई के ख़ास ख्याल रखना, अंगवस्त्रों को बेतरतीबी से मत फैलाना क्योंकि कभी भी कोई भी तुम्हारे कमरे में आ सकता है... उसे बैठने बेशक ना दो लेकिन झांक कर तो जा ही सकता है। कभी कमरे में घुटन हो तो सत्य की वादी में विचर लेना। ठहरने का पता है http://valleyoftruth.blogspot.com/थोड़े कहे को ज़्यादा और इस चिठ्ठी को तार समझना। बाक़ी बातें होती रहेंगीही- उमाशंकर सिंह
Post a Comment