वे कुछ लोग जो इस बात से गदगद थे
कि उनकी भाषा में अब चिड़ियों का चहचहाना बंद हो गया है
और नयी राजनीतिक बयार
और बाज़ार का विध्वंस दिखने लगा है
वे कुछ लोग जो गिनती में पांच थे मंच पर बैठे थे
एक युवा कवि पुरस्कृत हो रहा था
ये वो दौर था जब पुरस्कृत होने के लिए
अधेड़ और उम्रदराज़ होने की ज़रूरत नहीं होती थी
शब्द को साधने के शुरुआती दिनों में ही
साधकों की जमात में जगह मिल जाती थी
दर्शक दीर्घा में भी थे पचास-साठ
अपनी भाषा की नयी आहट सुनते हुए उनमें से कइयों को
इस बात का एहसास था
कि वे सब एक ऐतिहासिक घड़ी के साक्षी हैं
ऐसी घड़ियां आमतौर पर दिल्ली में ही आती-जाती हैं
हमारे दरभंगा में तो तब भी ये नहीं आयी
जब बाबा नागार्जुन
पंडासराय के सीलन भरे दो कमरोंवाले किराये के घर में
साल में दो-तीन बार आकर महीनों-महीनों ठहरते थे
ऐतिहासिक सभा में सब बोले
सबने कहा- हिंदी की जय
कइयों की आंखें भींगी कुछ के हाथों ने उंगलियां चटकायीं
सबसे आख़िर में अध्यक्ष की बारी आयी
कम किताबें ज़्यादा शोहरत वाले अध्यक्ष को
काफी तारीफ़ों के साथ बुलाया गया
परसाई कहते थे-
ज़िंदगी में दो मौक़ों पर आदमी सबसे अधिक कातर होता है
पहली बार प्रणय निवेदन करते वक्त
और दूसरी बार अगर आदमी शरीफ़ हुआ
तो अपनी तारीफ सुनते वक़्त
यह एक उद्धरण था, जिसे सुना कर
शराफ़त दिखाते हुए अध्यक्ष ने अपनी तारीफ़ किनारे रखने की कोशिश की
और युवा कविता पर न छोटा न बड़ा लेकिन असरदार बयान दिया
बाहर उमस से भरी दिल्ली को बारिश भिंगो रही थी
मंडी हाउस में इंतज़ार की चाय ठंडी हो रही थी
मुल्क इधर से उधर हो रहा था
हम गदगद हो रहे थे
गो कि गदगद वे लोग ही नहीं हो रहे थे
जो अपनी भाषा के नये-तीखे वाक़ये को मंच से बयान कर रहे थे
बीसवीं सदी के पहले दशक के सातवें साल में
जो इतिहास इस सम्मान समारोह में बन रहा था
सुना है कि कुछ ऐसा ही इतिहास पिछले साल भी बना था
और उसके पिछले साल भी
और पिछले के पिछले साल भी
इस तरह भाषा में अनोखे और अनोखे भाष्य का ये ऐतिहासिक सिलसिला
पिछली सदी के सन अस्सी के दशक से जारी है
जब पहली बार किसी युवा कवि को पुरस्कृत किया गया था
घर पहुंच कर इतिहास के इस कर्ज़ को
हमने पड़ोस में जाकर उतारना चाहा
- क्या आप अरुण कमल को जानते हैं?
- आप भी कमाल करते हैं भाई
आप तो जानते ही हैं
पार्टी-पॉलटिक्स से हमको मतलब नईं
सिन्हा साहब से पूछिए
उन्हें ज़रूर पता होगा
कोई काम होगा, वे थोड़ा ले-देकर ज्यादा करवा देंगे
कोई सिन्हा साहब किसी अरुण कमल को नहीं जानते!
कोई खन्ना साहब किसी हिंदी को नहीं जानते!
ये जानते हैं इन दिनों इस मुल्क में एक दर्जन हड़तालें चल रही हैं
राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है
यूपी में मायावती सरकार अच्छा काम कर रही है
और दो हज़ार दस तक दिल्ली की सभी रूटों में
मेट्रो रेल दौड़ने लगेगी
सम्मान समारोह धन्यवाद ज्ञापन के साथ ख़त्म हुआ
और हमारी भाषा का जादू भी सभागार की सीढ़ियों से
ससरते हुए दीन दयाल उपाध्याय मार्ग की सड़क पर जमे
बरसाती पानी में घुल गया
वहीं किनारे खड़े होकर एक युवा कवि
इस हॉल को हसरत से देख रहा था!
Thursday, July 12, 2007
युवा कवि सम्मान समारोह
Posted by Avinash Das at 8:46 PM
Labels: कविता की कोशिश
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8 comments:
सही है, सिपाही.. लगे रहो.
बीच में मौका लगे तो इसे हिन्दी वाले ब्लॉग पर भी चढ़ा दो.
इसे हिदी वाले ब्लाग पर डाल दिया है।
कोई सिन्हा साहब किसी अरुण कमल को नहीं जानते!/ कोई खन्ना साहब किसी हिंदी को नहीं जानते!
भई यह सच है जो हम हिन्दी वाले नहीं स्वीकार करना चाहते। आप ऐसे भी संवाद कर सकते हैं, पढ़ कर अच्छा लगा।
वाह वाह भाई,मज़ा आ गया। ये अपना भी दर्द है मगर कविता की ज़बान में कहने की भद्रता कभी नहीं दिखाई। हिन्दी की बेइज्जती पर हमेशा तल्खी के साथ ही बहसें हुई हैं। तल्खी आपके अंदर भी है पर कविता के माध्यम से सौम्यता के साथ अपनी बात कही। बधाई । अच्छा लगा।
कविता के माध्यम से बातों को सपाट ढंग से आपने दिल्ली और दरभंगा तक पहुंचा डाला...........
ठीक है.. मगर इसे कविता मत कहो अविनाश.. कविता के दायरे अनुभूतियों और संवेदनाओं के लिए सुरक्षित रहने दो.. संगीत तो पहले ही गया कविता से .. अब बकिया भी बुहार दोगे तो बचेगा क्या.. (अब ये मत कहना कि श्रोत्रिय की कविता में संगीत है)..
ये गद्य है.. इसे गद्य की तरह लिखो.. तोड़ तोड़ कर नहीं.. तो क्या फ़रक पड़ेगा.. ? और अगर कविता हुई तो तब भी पहचानी जाएगी..
Ye kavita padh kar aisa hi laga jaise kabhi kisi SRCC ke student ko dekhkar lagta hai ki kya esse Devnagri padhni aati hogi?
मेरे तईं यह कविता है . पिछले पच्चीस-तीस वर्षों में कविताएं पढते हुए जितनी भी मेरी कविता की समझ बनी है , उसके हिसाब से .
आलोचक/समीक्षक कविता पर अपनी राय दे . पर हेडमास्टर की तरह कवि को यह न बताए कि उसे कविता कैसे लिखनी चाहिए . अगर आलोचक/समीक्षक ने आदर्श कविता लिखने का रहस्य खोज लिया है तो उसे दस-बीस मॉडल कविताएं लिखकर इस शोध को सार्वजनिक कर देना चाहिए ताकि नये और प्रशिक्षु कवि लाभान्वित हो सकें .
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