पीली कोठली, जिसकी बाहरी दीवार पर एआईएसएफ का एक नारा लिखा था और किवाड़ पर खुरदरी लिखावट में इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन उर्फ इप्टा लिखा था, हमारे थिएट्रिकल किस्से का दूसरा अध्याय था। पहला अध्याय वीणापाणि क्लब से शुरू होता है, जिसका किस्सा कभी इत्मीनान से बांचेंगे। राज कैंपस में ही मिथिला विश्वविद्यालय का संगीत एवं नाटक विभाग था, जहां से लोग एमए की डिग्री लिया करते थे। तब उसके विभागाध्यक्ष अविनाश चंद्र मिश्र थे, जिनके कुछ नाटकों को पटना इप्टा ने पूरे देश में मंचन करके लोकप्रिय बना दिया था, जिनमें दो नाम अभी याद आ रहे हैं - उचक्कों का कोरस और बड़ा नटकिया कौन।
वो कोठली ऐसी थी, जिसमें बेगूसराय-पटना के जो भी इप्टा एक्टिविस्ट आते, ठहरा करते। रिहर्सल का कमरा जिसमें एक लकड़ी की आलमारी थी और एक चौकी - शाम के वक्त चौकी खड़ी कर दी जाती थी और खाली फर्श पर रिहर्सल होता था। पटना इप्टा से जुड़े पंकज और राजेश सिन्हा नाम के भी रंगकर्मी एमए की डिग्री लेने दरभंगा आये, तो इसी कोठली में टिके। टिकने के बहाने एक नाटक की तैयारी भी शुरू हुई लोकल रंगकर्मियों के साथ। नाटक था भिखारी ठाकुर रचित गबरघिचोर। मिथिला में भोजपुर का ये नाटक जिस अंदाज़ से खेला गया और लोगों ने इसकी प्रस्तुति को जितनी मोहब्बत दी, वह ज़ेहन में अब भी बसा हुआ है। इसकी प्रस्तुति हमने शहर के थिएटर हॉल से लेकर गांव के पंडाल तक में की।
मैं इसमें सूत्रधार हुआ करता था, जो सिरी गनेस गुरु सीस नवाऊं रामा हो रामा की लय में नृत्य करते हुए कथा शुरू करता है और बीच-बीच में आकर कथा आगे बढ़ाता है। इसके रिहर्सल के दरम्यान एक बार पंकज ने मुझ पर थप्पड़ चला दिया था और मैं रिहर्सल के बीच से रोते हुए घर लौट आया था। बाद में मनाने के बाद ही रिहर्सल के लिए तैयार हुआ।
भिखारी ठाकुर की स्पिरिट और उनके बारे में वक्त के साथ और पता चला। संजय उपाध्याय निर्देशित बिदेसिया की प्रस्तुतियों को कई बार देखने का मौक़ा मिला - पटना से दिल्ली तक। बिदेसिया परदेस गये लोगों के पीछे छूटी दुख कथा का बेमिसाल नाट्य-रूपातंरण है और जिसकी वजह से भिखारी को राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता मिल चुकी है। पटना के किसी प्रेस से भिखारी रचनावली का एक पतला सा खंड भी हाथ लगा, जिस पर किसी मेहरबान दोस्त ने हाथ फेर दिया। बाद में संजीव के उपन्यास सूत्रधार के जरिये भी भिखारी की जीवनी हाथ लगी। एक बार रिपोर्टिंग के लिए भिखारी ठाकुर के गांव जाना चाहता था, लेकिन जब छपरा पहुंचा तो उनका गांव बाढ़ में डूबा हुआ था। छपरा के एक चौराहे पर उनकी मंडली का स्कल्पचर भी खड़ा है। कोई भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपीयर मानता है, तो कोई भोजपुरी संस्कृति की गांधी धारा के रूप में उन्हें व्याख्यायित करता है। जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर, जो सीवान में शहाबुद्दीन के गुर्गों के हाथों मारे गये, ने भिखारी पर थीसीस भी लिखी।
कहने का कुल मतलब ये कि जो गुज़र जाता है, उसकी स्मृतियां अनंत व्याख्याओं में उनके पास भी पहुंचती हैं, जिन्होंने उस शख्स को न कभी देखा न सुना। सिने गायकों की आवाज़ें तो फिर भी हमेशा वर्तमान होती हैं, लेकिन भिखारी जैसे लोग और उनकी नौटंकी तो आख्यानों में बची रही। अब आधुनिक थिएटर के कलाकार भी उनके नाटक खेलते हैं। हमारे एक दोस्त तैयब हुसेन पीड़ित ने उन पर पीएचडी भी की है। आख्यानों के साथ ही बाद की पीढ़ी के लिए फिराक ने ये शेर छोड़ दिया है -
अब अक्सर चुप चुप से रहे हैं, यूं ही कभू लब खोले हैं
पहले फिराक को देखा होता, अब तो बहुत कम बोले हैं।
पर कभी कभी तकनीक का संयोग हमारी मुलाक़ात इतिहास से करवा ही देता है।
भिखारी ठाकुर की ओरिजन आवाज़ हमें नेट पर टहल करते हुए मिल गयी। किसी समारोह में भिखारी काव्यपाठ कर रहे हैं। मैं रांची में रहनिहार अपने दोस्त निराला से, जो कि बिदेसिया डॉट को डॉट इन चलाते हैं, गुज़ारिश करूंगा कि इसका टेक्स्ट सुन कर, समझ कर उसे अपनी वेबसाइट पर तो बांचें ही, इसे थोड़ा भोजपुरी प्रेमियों को भी सर्व करें।
तो ये रही भिखारी ठाकुर की आवाज़...
Sunday, November 25, 2007
कहत भिखारी भाई
Posted by Avinash Das at 10:06 AM
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10 comments:
भाई आपने तो इतिहास के एक टुकड़े को यहां जीवित कर दिया. बेहद मार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का काम.भूरि-भूरि प्रशंसा की जाने चाहिये आपके इस पॊडकास्ट की. बधाई.
achcha sansmaran !in padaavo par kuch aur pal thaharana chahie.
अद्भुत.... इतने दिन से नाम सुना काम सुना पर इस दर्द भरी आवाज़ को कभी सुना ही नही था, संजय उपाध्याय का नाटक मैने देखा है, पर आपने वाकई ऐतिहासिक आवाज़ से रूबरू कराया धन्य हैं आप।बधाई स्वीकार करें,
भिखारी ठाकुर से मिलाने के लिए आपका किन शब्दों में आभार व्यक्त करूं... समझ नहीं आ रहा।
aapka badaa aabhaar iske liye
sirf shukriya kahna thik nhi hoga. aapne jo uplabdh krwaya, wh ek sanskritik virasat ki khoj jaisa hai.
nirala
वाह.....बहुत मज़ा आया आज आपके "मोहल्ला" से इतर ये बेहतरीन ब्लॉग पढ़कर.....आप तो वाकई इतनी गहराई समेटे हैं कि जितना आपको जानने की कोशिश करता हूँ, आपका अतीत पढ़कर मेरे पिछले अनुमान धराशायी हो जाते हैं... ..लिखते रहें और मेरी प्यास बढाते रहें.....
निखिल
बहुत बहुत शुक्रिया आपका |
bhikhari thakur ki kuch rachnayye yaha mil sakti hai http://bhojpuriallsongdownload.blogspot.com/2010/06/bhojpuri-poets-i-bhikhari-thakur.html
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