मेरी प्रिय कविता। फेसबुक पर किसी ने मुझे टैग किया था, मैंने रिमूव कर दिया। आज सुबह उठते ही वो कवि याद आया, जिसके पास कभी कोई डायरी मैंने नहीं देखी थी। मेरे गांव से पांच कोस दूर उसकी कुटिया थी और वह हमेशा नंगे पांव मुझसे मिलने आता था। एक नयी कविता सुनाऊं - हर मुलाकात में पहला वाक्य यही होता था। हर बार मैं उसकी नयी कविता सुनता था। अपनी पुरानी कविताएं उसे याद नहीं रहती थीं। वह अपनी हर नयी कविता के साथ पुरानी कविताएं भूलता चला जाता था। बुलाकी साव नाम का वह कवि अब कहां है, मुझे नहीं पता। आज से बीस साल पहले वह उम्र में मुझसे बीस साल बड़ा था। बुलाकी साव की ही एक कविता मेरी सबसे प्रिय कविता है। सुनिए...
कहकहा
अहा
उसने क्या क्या न सहा हाय हाय
हवा चली सांय सांय
गोली थी ठांय ठांय! निर्ममता!!
मां थी और बेटी थी ममता
सड़कों मोहल्लों में कहीं नहीं समता
किस्सा क्या थमता, सब लूट गये
इज्जत के रंग कहीं छूट गये
लाल लाल क्रांति के तहखाने कूट गये
ज़हरीली फसल देख लहलहा
कहकहा
अहा
No comments:
Post a Comment