Thursday, May 12, 2016

Buddha in A Traffic Jam

13 मई 2016 यानी आज रीलीज़ हुई फिल्‍म Buddha in A Traffic Jam पर मेरी यानी अविनाश दास की टेक

हमारे प्रिय अग्रज पवन कुमार वर्मा ने एक किताब लिखी थी, द ग्रेट इंडियन मिडल क्‍लास। मध्‍य वर्ग की अजीब दास्‍तान दरअसल यही है कि वह अराजनीतिक होने में विश्‍वास करता है। जबकि सच यही है कि जब आप राजनीति के खिलाफ़ खड़े होते हैं, तब भी आप एक तरह की राजनीति कर रहे होते हैं। मुझे तक़लीफ़ नहीं होती, जब विवेक अग्निहोत्री अपनी फिल्‍म बुद्धा इन अ ट्रैफिक जैम में नक्‍सलवाद की राजनीति का विरोध करते हुए अपनी मनपसंद राजनीति की वकालत करते। लेकिन वह राजनीति के बरक्‍स व्‍यापार की बात करते हैं और बड़ी चालाकी से उसमें भ्रष्‍टाचार से मुक्ति का जुमला जोड़ देते हैं। सभ्‍यताओं के संघर्ष में जिस पूंजीवाद की भूमिका उकसावे वाली होती है, उस पूंजीवाद के साथ खड़े होना एक विचारधारा है और विवेक उस विचारधारा के प्रतिनिधि फिल्‍मकार लगते हैं। इस तरह, भारत का एक सहिष्‍णु नागरिक होने के नाते "बुद्धा इन अ ट्रैफिक जैम" से असहमति के बाद भी मैं विवेक अग्निहोत्री की इस फिल्‍म का स्‍वागत करता हूं और मित्रों से यह फिल्‍म देखने की अपील करता हूं।

संघर्ष में शामिल होना न होना एक अलग स्थिति है, लेकिन मैं खुद को मुक्ति के हर संघर्ष का समर्थक मानता हूं। इसमें उत्‍पादक और ग्राहक के बीच खड़े बिचौलिये से मुक्ति भी शामिल है और विवेक का मानना है कि नक्‍सलवाद का पूरा संघर्ष इसी बिचौलिये की रक्षा का संघर्ष है। सॉरी विवेक, किसी भी राजनीति को इतना सरलीकृत करके देखने की आपकी समझ पर मैं आपसे थोड़ा हंस लेने की इजाज़त चाहता हूं।

मेकिंग शानदार और संगीत उम्‍दा है। लेकिन संगीत पर भी कुछ बात। फिल्‍म में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्में हैं। गुरिल्‍ला सिनेमा, नुक्‍कड़ नाटक सत्ता-व्‍यवस्‍था के विरोध में अभिव्‍यक्ति का औज़ार बन कर पैदा हुआ - लेकिन सत्ता ने इस औज़ार को कोऑप्‍ट कर लिया। इनका पूरी तरह से एनजीओकरण हो गया। इस उदाहरण से और "बुद्धा इन अ ट्रैफिक जैम" में इस्‍तेमाल हुए फ़ैज़ के गीतों से समझें तो अब पूंजीवाद की नज़र मुक्तिकामी रचनाधर्मिता पर भी है। अब वह मुक्ति और संघर्ष के गीतों का अर्थ बदल देने की तैयारी में है। मुझे अफ़सोस है कि फ़ैज़ के गीत उस फिल्‍म के किरदार गा रहे हैं, जो फिल्‍म राजनीति की जगह बाज़ार के साथ खड़ी है।

मेरा मन भरा हुआ है, पर नाराज़ नहीं हूं। मुझमें पर्याप्‍त सहिष्‍णुता है। धन्‍यवाद।

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