जब मैं अठारह साल का हुआ, उसके बाद के चुनाव में नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने थे। पर मैंने उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया था। मेरे घर पर तो लोक लहर पत्रिका आती थी। हमारे जिले से विजयकांत ठाकुर सीपीएम के उम्मीदवार थे। मैं बहुत उत्साह से वोट डालने गया था, लेकिन मेरा वोट पहले ही पड़ चुका था। बिना निशान वाला खाली अंगूठा लेकर बेहद उदास मैं अपने गांव से बाहर पोलो मैदान की तरफ निकल आया। वहीं किशोरी भैया की साइकिल पंचर की दुकान थी, जहां बुलाकी साव अपने गांव के सझुआर टोले के किसी लड़के की साइकिल का पंचर ठीक कराने आया था। पास से गुज़रा तो उसने झकझोरा, "क्या मुन्ना, तुम्हारा भी पंचर निकल गया न!" उसकी बात पर इतना गुस्सा आया कि बता नहीं सकता। लेकिन बुलाकी साव ने कहा, "मेरा भी पंचर निकल गया। हम भी भोट नहीं डाल पाये।" उसने अपना खाली अंगूठा दिखाया, तब जाकर तसल्ली हुई। उसने बताया कि जिस साल वह पैदा हुआ, उसी साल प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी बनी थी। लेकिन जब वह बड़ा हुआ, तो वह पार्टी थी ही नहीं। एक बार मैथिली के विराट कवि सुरेंद्र झा सुमन से मिला। सुमन जी जनसंघ के संस्थापकों में से थे और इसी पार्टी से चुनाव भी लड़ चुके थे। तो जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई, तो वह इस पार्टी का अवैतनिक कार्यकर्ता हो गया। एक रात पार्टी दफ्तर में रुका। उसी रात जिला अध्यक्ष ने उसकी पैंट उतारने की कोशिश की। वह रातोरात वहां से भागा और तमाम पार्टियां, उनके झंडे और उनका वोटबैंक लांघते हुए बागमती नदी में कूद गया। कई डुबकियां लगाने के बाद पवित्र होकर निकला। फिर हर चुनाव में नेताओं के खिलाफ कविताएं लिखने लगा। यह कविता उसी दिन बुलाकी साव ने मुझे सुनायी थी। कादो-कीचड़ भचर भचर बातों का नेता भूत भस्म भैरव भभूत लातों का नेता ऊंचे से ज्यादा ऊंची जातों का नेता बही संभालो, है उधार-खातों का नेता ले लो इस चुनाव में ले लो आर्य मिले अन-आर्य मुगल अंग्रेज मिले सोच समझ में जो भी सबसे तेज मिले ऊबड़ खाबड़ या फूलों की सेज मिले बर्तन बासन चौकी कुर्सी मेज मिले ले लो इस चुनाव में ले लो लोकतंत्र का मेला ठेला टके सेर है उम्मीदों-वादों का केला टके सेर है गुरु जलेबी चमचम चेला टके सेर है आम आदमी आज अकेला टके सेर है ले लो इस चुनाव में ले लो
Sunday, May 22, 2016
बुलाकी साव की छठी कविता
Posted by Avinash Das at 10:20 PM
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